Thursday, January 5, 2017

2017 का आना

2017 का आना
हर श्वास नयी होती
आने और गुजरने के बाद हो जाती वह पुरानी
इसप्रकार चलता रहता श्वास दर श्वास समय का सिलसिला
बीतते जाते निमिष, पल, मिनिट, घंटे, सुबह, दुपहर, शाम, रात, दिन, सप्ताह, महीने और वर्ष
पर इनमें से अधिकांश बनते केवल गिनती के हिस्से
और कुछ ही बन पाते उँगलियों पर गिने जाने या स्मरणीय बन पाने के लायक

जरा पूछिए-- अपने आप से
क्या ऐसे ही बीता 2016 का वर्ष
या कुछ नया करके गया
और सचमुच कुछ नया करने के लिए आ रहा 2017 का वर्ष

वे होते विरले, जो चलते लीक छोड़
और कोशिस करते नये निर्माण की
नया रचने की
लगातार छोटे हो रहे देश से बृहत्तर भारत गढ़ने की
वसुधैव कुटुम्बकम् वाले अनगढ़ भारत को रूप देने की
राजनैतिक आजादी वाले भारत को वास्तविक सामाजिक, आर्थिक, सम्प्रभुता, समरसता वाली भारत की भाषाओं को सच्ची स्वतंत्रता दिलाने की
पर कुछ ऐसे भी होते, जिन्होंने न तो नया कभी कुछ किया होता
न कुछ कर पाते
और न उनमें क्षमता होती कुछ हटकर कर पाने की
बस, केवल और केवल खड़ा करना चाहते
अवरोध दर अवरोध, रोड़े दर रोड़े, समस्या दर समस्या, अड़चन दर अड़चन प्रगति की राह पर
और चाहते सत्ता की कुर्सी पर लगातार बैठे रहना
सलीके से बैठ भी नहीं पाते या बैठना आता नहीं, तब भी.......
इतिहास ऐसों को कभी माफ नहीं करता, --यह वे स्वयं जानते हैं, तब भी......
ईसामसीह के इस नववर्ष को हम नववर्ष मानें न मानें
पर क्या 1 जनवरी 2017 के इस क्षण
हम भारत के आम जन से यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि
अवरोध दर अवरोध पैदा करने वालों के हाथों के वे न बनें खिलौने
एवं ऐसे ही समय न बीतने दें पहले के वर्षों  की तरह
और सशक्त भारत, स्वतंत्र भारत, समृद्ध भारत, समर्थ भारत के निर्माण में चढ़ाएँ
अपना एक सार्थक अर्घ
क्यों चढ़ाएँगे न एक अर्घ अनगढ़ भारत के गढ़े जाने का......
शब्दयिता
वृषभ प्रसाद जैन